Monday, October 06, 2014

उम्र का तजुर्बा

कुछ मज़ा है उस बढ़ती उम्र का भी ,
कुछ तजुर्बे और चांदनी बालों की ,
वोह लड़कपन की शरारतों का राज़ ,
और बचपन की चहकती आवाज़ ,
खूबसूरती हरयाली और हवाओं की ,
और सादगी ख़ुशी और फ़िज़ाओं की
शोखी से जान कर भूल जाना ,
और फिर भूले ख्यालों को याद दिलाना
जान बूझकर मासूमियत से ,
घंटों किसी से देर बतियाना ,
कुछ फलसफों , कुछ ख़ुदा में ,
खुद को खो के पा जाना ,
भरे हुए एहसासों से, तो कभी
कभी खाली खुद को भी पाना ,
भिन्न रंग लिए जीवन के
रोज़ नए दिन जुड़ जाना ..
और उम्र के पथ पे और
थोड़ा आगे बढ़ जाना . 

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