Friday, August 24, 2018

डर-ऐ-फितरत

एक सुकून भरी नींद से जल्दी उठने के बाद ...मेरे अंदर का शायर जाग जाता है.. कुछ शब्द और ख्याल ले कर . कुछ विचार और परिकल्पनाओं के साथ कल रात नींद में खो गयी थी ... शायद एहि सच है, की कुछ स्थायी नहीं एकसार नहीं.. जो किसी के लिए दुःख है, वही किसी के लिए ख्वाब है और.. और किसी के लिए जीने का लहज़ा . जिस तरफ से अक्स देखो वैसा ही मिलेगा. ज़रूरत है की अपने को उस अक्स में रख कर देखने की . ज़िन्दगी श्याम - श्वेत रंगों की नहीं है.. और भी रंग है जो शायद उस परिपक्ता और मुस्कुराहटों में नहीं दीखते . यह अंतर्मन खाली होने या दुःख का कारन नहीं है.. बस वैसा नहीं है जैसे तुम हो . यही भिन्नता ही उसका अलग रंग है . शब्दों में समझना और समझाना आसान नहीं है ..क्योंकि तुम वहीँ से देख रहे हो ..जहाँ हो ..कुछ कदम आगे बढ़ाओ और झांक कर देखो.. तुम्हे एक बदला जहाँ दिखाई देगा . डर सिर्फ इतना है की जिसे तुम आज अनेकश्पित कह रहे हो ..कहीं उसकी कामना ना करने लगो


लगता है डर लोगों को अकेलेपन से ...
यह ऐसी बददुआ है ..जिसे बहुते मांगते हैं ...
मिला सुकून न जिसे महफिले दुनिया में...
वह इसकी पनाह में सुकून पाते हैं ...

मुलाकात रहती है खुद से ...
बेवफाई का ना तसव्वुर पाते हैं ..
डर है उनको साथ है पास जिनके ..
हम अपनी दोस्ती में खुद मौज मानते है ..

ना आदत है.. ना फितरत कोई..
यह वह रस्म है जिसे बरसो से हम निभाते हैं

क्यों डरते हो तुम मेरे लिए ...
कर पाओगे क्या कुछ कभी ...
बढ़ा ना पाओगे हाथ तोह...
ना तोड़ो हिम्मत मेरी..

मुझे तोह आदत है ..
जगे रुस्वाई बा नज़र करने की ...
पर क्या सेह पाओगे तुम ...
कोशिशे घुमान नेस्तोनाबूत होते हुए ..