Saturday, May 23, 2015

धुप सुबहेरे



परिपूर्ण है वह पा के,
खोने को जो नहीं पास मेरे ,
अब लगता है सब मिल गया ,
जो भूल से सब दे दिया ,
था मैं एक गरीब सा ,
जब था सब पास मेरे ,
डर खोने का..और पाने का,
कमी सब की साथ मेरे ,
अब नहीं वह जो दुनिया ,
ना धातु ना पीर मेरे ,
पर लगता है सब पूर्ण है ..
आज़ाद पर , बे ज़ंज़ीर मेरे,
सुकून है नींदों में..
और सोने से धुप सुबहेरे