Saturday, January 31, 2015

आज भी..

कुछ अधूरा सा है मुझ में आज भी..
ढूंढ़ता हूँ मंदिर मस्जिद में आज भी ..
बंधन माया का छोड़ आया ..
बचा है फिर मोह आज भी ..
देखते दूर से ज़िन्दगी चलचित्र
आ रहा है मज़ा दिनों बाद आज भी ..
बीत गाये दिन बीते ..
कुछ बचा नहीं उन का आज भी ..
खुशियों का पता नहीं मुझे ..
पर सूना है आँगन मेरे आज भी
सुन कह सकते है आज भी साथ उसके
पर बैठा है दूर ना साथ आज भी
माज़ी की मर्ज़ी या साथ इ माज़ी
न मालूम कुछ खेल आज भी
अँधेरा है फिर भी चले जा रहे हम
न मंज़िल का पता न रस्ते आज भी ..

Saturday, January 24, 2015

श्री हरी


कुछ ढूंढ़ता हूँ पा कर तुझे
सबमे है  तू  श्री  हरी ..
एक अधूरा सा .. कुछ में .
सिर्फ पूर्ण तू श्री हरी

इन पथरो में ..कुछ फूलों में ..
कुछ जीवों ..कुछ  निर्जीव  में ..
माटी  का  बना  में ..
सजीव  तू  श्री  हरी ..

Shunya शुन्य

एक शुन्य था .. जो रह गया
फिर कुछ सन्नाटा कर गया
कुछ खिलती बिखरती
यादो को यह भर गया
न था राहगीर वह
न हमसफ़र रह गया
आया था वह सुर बनकर
आवाज़ बन कर रह गया
खाली है आज भी घर मेरा
आँगन मेरा
क्या था जो ले गया
क्या वह दे कर फिर गया
कुछ सुबह था नहीं वह
जो साँझ तक भी नहीं रहा
सपने का एहसास भी नहीं
सिर्फ शुन्य बन कर रह गया
-neetu/25-01-2015/01:07