Saturday, January 24, 2015

Shunya शुन्य

एक शुन्य था .. जो रह गया
फिर कुछ सन्नाटा कर गया
कुछ खिलती बिखरती
यादो को यह भर गया
न था राहगीर वह
न हमसफ़र रह गया
आया था वह सुर बनकर
आवाज़ बन कर रह गया
खाली है आज भी घर मेरा
आँगन मेरा
क्या था जो ले गया
क्या वह दे कर फिर गया
कुछ सुबह था नहीं वह
जो साँझ तक भी नहीं रहा
सपने का एहसास भी नहीं
सिर्फ शुन्य बन कर रह गया
-neetu/25-01-2015/01:07

No comments: