Friday, October 10, 2014

ख़्वाबों की दुनिया

कभी कभी ख्वारिश मेरी भी होती है ,
की तेरे पास आ के खो जाऊ ,
मज़बूत बाहों के आगोश में ,
में भी सो जाऊ
नहीं हो कोई ख़ुदा और तेरे सिवा ,
सांस बन के तेरी धरकन में समाउ
भीड़ है दुनिया में लोगों की
और रिश्तों की ..,
एक रिश्ता संग तेरे और दुनिया
छोड़ पाउ ...
ख़ुशी क्या और ग़म क्या ,
कुछ लम्हा साथ का जी पाउ ,
उम्मीद नहीं किसी से ,
ना उस से ना तुझ से ,
इन उमीदों के परे ..
एक छोटा जहान बसाऊ ,
कुछ किलकारियां कुछ मुस्कान ,
एक चहकती सुबह को आपनाउ ,
ख़्वाब से लगता है अब ,
जहान सारा ..,
इन्ही ख़्वाबों को ले कर ,
थोड़ा सो जाऊ ..

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