कुछ खामोश लम्हों सी
यह आँखें तेरी ...
देखती रही .,सेहती रही ..
पुछा जो क्यों गए
उस मुकाम से ...
तो बोली मिलते नहीं
तजुर्बे सीधी साफ़ राहो पर ...
कुछ ख़ुशी .., कुछ दर्द
सहने की ..
और पार उसके कुछ
अनकही सी कहने सी ..
मालूम नहीं .. मुकाम होगा
क्या मेरा ...
पर चलती रहूँ और
सब से हो वाबस्ता ..
साथ तेरे बैठूंगी तोह
सुनुगी.. दिल -ऐ-आगाज़ ...
कुछ दर्द तेरा ..कुछ
बाते मेरे साथ ..
रिश्ता रखती हूँ
दर्द से में तेरे ...
कुछ बात और कुछ
खामोशी के साथ ..
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