Sunday, July 26, 2015

फिर कुछ ...

इतेज़ार है आँखों को तेरे
पूछ रही हैं बोलो तो ..
जान लेते हो मैं की सब..
अब बोलो तोह मानु तब ..

आंसुओं के पार जाती मैं
कुछ खुशियों को तराशती हूँ
हाथ तेरा पकड़ कर..
कुछ नाचना गाना चाहती हूँ

अंदाज़ तेरा मालूम नहीं पर ..
मुस्कुराहटों में गुमना चाहती हूँ
कुछ ज़िन्दगी का तरीका तेरा
में भी जीना चाहती हूँ

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