Monday, June 29, 2015

इंतेज़ार रमज़ान तक

क्या ले कर आया था मैं साथ मेरे नसीब का
जो दिया तूने दिया मालिक मेरा गरीब का
लगा डर जब अकेले से तोह पुछा
डर रहा है क्यों ...
.. कौन था पास तेरे छोड़ आया साथ जो
तब भी था तू रकीब मेरा ..मौला और मालिक तू
नहीं उम्मीद किसी और से जो हाथ तेरे साथ तू
ढूंढता हु आज मैं ..छूने को हाथ तेरा
..कुछ एहसास साये का ..और कुछ साया साथ तेरा
नहीं पास क्या कुछ समय भी बचा नहीं मेरे लिए ..
सब नमाज़ी ले गए क्या आज़ान ऐ रमज़ान में ..
करूँगा इंतज़ार में भी तेरा मैं सेहर तक ..
निकलेगा चाँद मेरा भी उस रोज़ जब दीद तेरी
मीठी रहेगी मेरी भी ईद बन साथ तेरे ..

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