Tuesday, October 27, 2020
The Prayer of the Undefeatable Warrior
Can you stand in your sorrow without needing to flee to the crushing business of doing something?
Can you say what your wisdom knows needs to be said even when you disappoint those who listen? And angers those who disagree.
Can you walk that path that few of the crowd wish to walk and still know joy, peace and freedom? Free of the need to fit in. And please the majority.
Can you risk being hated, in order to be respected? And eventually followed.
Can you be in the world yet free of the pull to be wedded to it, able to know the pleasures of the solitude, silence and stillness of the wilderness? Open to embracing the beauty of tiny graces and savoring the joys of the ordinary.
Can you grasp for your higher visions, see what few see and march strongly in the direction of your truest dreams and still be serene should you fail? And welcoming of all that destiny has written in your stars.
Can you love as only the fool loves, laugh like only the jester laughs and risk being labelled as crazy for the insanity of your innocence?
Can you push away the trivial so you produce the monumental? And make a mark that makes you immortal. In your own gentle and original way.
This is what I seek to know. Can you be true. To you?
-Robin Sharma
Friday, May 03, 2019
कुछ
करता हूँ इंतज़ार रोज़ कुछ
बदले समय या हालत कुछ
वह बहती जा रही है रेत से
घड़ियां हाथों से कुछ
ढूंढते सवालों के जवाब कुछ
गुम अज़ीज़ चेहरे कुछ
वह नादान खुशियों के पल कुछ
वोह नन्हे हाथों में वापस आते कुछ
ग़ुम कुछ धुंधली आँखों के समय
फिर भी कल का इंतज़ार कुछ
-नीतू (03-05-2016: 23:41)
बदले समय या हालत कुछ
वह बहती जा रही है रेत से
घड़ियां हाथों से कुछ
ढूंढते सवालों के जवाब कुछ
गुम अज़ीज़ चेहरे कुछ
वह नादान खुशियों के पल कुछ
वोह नन्हे हाथों में वापस आते कुछ
ग़ुम कुछ धुंधली आँखों के समय
फिर भी कल का इंतज़ार कुछ
-नीतू (03-05-2016: 23:41)
Thursday, April 18, 2019
aaj
kuch aazaad huye fikr se..
ab darr nahi zamaane ka..
kuch manziloon ko paanee ka..
aur dil kho jaane ka
ab darr nahi zamaane ka..
kuch manziloon ko paanee ka..
aur dil kho jaane ka
Friday, November 02, 2018
रौशनी दिवाली की
इस दिवाली ढूंढ़ती हूँ कुछ रौशनी आँखों में अपनों की
ख़ुशी की, उम्मीद की..और कुछ पूरा होते सपने की
ढूंढ़ती हूँ कुछ मिठास, रिश्तों में अपनों की
कुछ प्यार की, कुछ दुलार की.. कुछ यादों में इंतज़ार की
ढूंढ़ती हूँ रौनक अपनों के घर आने की,
मिलन की, उत्सुकता की ... अपनों के प्यार की
ढूंढ़ती हूँ वह रिश्ते, जुड़े थे जो प्यार से,
कुछ मनुहार से, और कुछ प्यार की तकरार से
खो गएँ हैं ना जाने कहाँ, मेरा एक छोटा जहाँ
एक घर अपना सा, कुछ गरम, कुछ नरम सा
वह दोपहरी में दाल चावल के साथ माँ का प्यार जाताना,
और शाम को चाय की चुस्कियों के साथ,
पापा को दिन भर का हाल बतियाना
और कुछ मनपसंद खाने माँ से बनवा
साथ सबके टी वी की महफ़िल जमाना
दिवाली भी होती थी रौशनी भरी
जब पटाके होते थे कम..
रतजगा कर माँ मिठाई बनाती,
रंगोली, सजावट करते हम
खील बताशों की खरीदारी थी
पापा भाई के जिम्मे,
और सजावट लाइट की तैयारी
से भाई बनाये रोशन हर कोने
पर अब तोह लगता है दिवाली
कोई उधार बन कर आयी
कुछ रीती रिवाजों का चुकता और भरपाई
सिमटा था जो घर, छितरा सा जाता है
घर का दिया भी टीम टीम कर सिहरन से घबराता है...
लक्समी गणेश ढूँढ़ते आसरा भी कोई कोने में..
राह ताकता डब्बा मिठाई का
कर लो साथ मुँह मीठा तुम
ख़ुशी की, उम्मीद की..और कुछ पूरा होते सपने की
ढूंढ़ती हूँ कुछ मिठास, रिश्तों में अपनों की
कुछ प्यार की, कुछ दुलार की.. कुछ यादों में इंतज़ार की
ढूंढ़ती हूँ रौनक अपनों के घर आने की,
मिलन की, उत्सुकता की ... अपनों के प्यार की
ढूंढ़ती हूँ वह रिश्ते, जुड़े थे जो प्यार से,
कुछ मनुहार से, और कुछ प्यार की तकरार से
खो गएँ हैं ना जाने कहाँ, मेरा एक छोटा जहाँ
एक घर अपना सा, कुछ गरम, कुछ नरम सा
वह दोपहरी में दाल चावल के साथ माँ का प्यार जाताना,
और शाम को चाय की चुस्कियों के साथ,
पापा को दिन भर का हाल बतियाना
और कुछ मनपसंद खाने माँ से बनवा
साथ सबके टी वी की महफ़िल जमाना
दिवाली भी होती थी रौशनी भरी
जब पटाके होते थे कम..
रतजगा कर माँ मिठाई बनाती,
रंगोली, सजावट करते हम
खील बताशों की खरीदारी थी
पापा भाई के जिम्मे,
और सजावट लाइट की तैयारी
से भाई बनाये रोशन हर कोने
पर अब तोह लगता है दिवाली
कोई उधार बन कर आयी
कुछ रीती रिवाजों का चुकता और भरपाई
सिमटा था जो घर, छितरा सा जाता है
घर का दिया भी टीम टीम कर सिहरन से घबराता है...
लक्समी गणेश ढूँढ़ते आसरा भी कोई कोने में..
राह ताकता डब्बा मिठाई का
कर लो साथ मुँह मीठा तुम
Wednesday, October 10, 2018
बाकी
थोड़ा लेने दो साँस की अभी कुछ लम्हे बाकी हैं
कुछ वजूद के कुछ जिम्मेदारी ले लम्हे बाकी हैं
मर चूका है सब बाकी था जो मुझमे थोड़ा
पर वस्ल के पर्चे की नतीजे अभी बाकी हैं
उन राहों का क्या एतबार जो कभी न अपनी थी
उन मंजिलों के इंतिहान अभी बाकी है
मर चूका हूँ में पर राख अभी बाकी है
- नीतू (०८-१०-२०१८)
कुछ वजूद के कुछ जिम्मेदारी ले लम्हे बाकी हैं
मर चूका है सब बाकी था जो मुझमे थोड़ा
पर वस्ल के पर्चे की नतीजे अभी बाकी हैं
उन राहों का क्या एतबार जो कभी न अपनी थी
उन मंजिलों के इंतिहान अभी बाकी है
मर चूका हूँ में पर राख अभी बाकी है
- नीतू (०८-१०-२०१८)
Friday, August 24, 2018
डर-ऐ-फितरत
एक सुकून भरी नींद से जल्दी उठने के बाद ...मेरे अंदर का शायर जाग जाता है.. कुछ शब्द और ख्याल ले कर . कुछ विचार और परिकल्पनाओं के साथ कल रात नींद में खो गयी थी ... शायद एहि सच है, की कुछ स्थायी नहीं एकसार नहीं.. जो किसी के लिए दुःख है, वही किसी के लिए ख्वाब है और.. और किसी के लिए जीने का लहज़ा . जिस तरफ से अक्स देखो वैसा ही मिलेगा. ज़रूरत है की अपने को उस अक्स में रख कर देखने की . ज़िन्दगी श्याम - श्वेत रंगों की नहीं है.. और भी रंग है जो शायद उस परिपक्ता और मुस्कुराहटों में नहीं दीखते . यह अंतर्मन खाली होने या दुःख का कारन नहीं है.. बस वैसा नहीं है जैसे तुम हो . यही भिन्नता ही उसका अलग रंग है . शब्दों में समझना और समझाना आसान नहीं है ..क्योंकि तुम वहीँ से देख रहे हो ..जहाँ हो ..कुछ कदम आगे बढ़ाओ और झांक कर देखो.. तुम्हे एक बदला जहाँ दिखाई देगा . डर सिर्फ इतना है की जिसे तुम आज अनेकश्पित कह रहे हो ..कहीं उसकी कामना ना करने लगो
लगता है डर लोगों को अकेलेपन से ...
यह ऐसी बददुआ है ..जिसे बहुते मांगते हैं ...
मिला सुकून न जिसे महफिले दुनिया में...
वह इसकी पनाह में सुकून पाते हैं ...
मुलाकात रहती है खुद से ...
बेवफाई का ना तसव्वुर पाते हैं ..
डर है उनको साथ है पास जिनके ..
हम अपनी दोस्ती में खुद मौज मानते है ..
ना आदत है.. ना फितरत कोई..
यह वह रस्म है जिसे बरसो से हम निभाते हैं
क्यों डरते हो तुम मेरे लिए ...
कर पाओगे क्या कुछ कभी ...
बढ़ा ना पाओगे हाथ तोह...
ना तोड़ो हिम्मत मेरी..
मुझे तोह आदत है ..
जगे रुस्वाई बा नज़र करने की ...
पर क्या सेह पाओगे तुम ...
कोशिशे घुमान नेस्तोनाबूत होते हुए ..
लगता है डर लोगों को अकेलेपन से ...
यह ऐसी बददुआ है ..जिसे बहुते मांगते हैं ...
मिला सुकून न जिसे महफिले दुनिया में...
वह इसकी पनाह में सुकून पाते हैं ...
मुलाकात रहती है खुद से ...
बेवफाई का ना तसव्वुर पाते हैं ..
डर है उनको साथ है पास जिनके ..
हम अपनी दोस्ती में खुद मौज मानते है ..
ना आदत है.. ना फितरत कोई..
यह वह रस्म है जिसे बरसो से हम निभाते हैं
क्यों डरते हो तुम मेरे लिए ...
कर पाओगे क्या कुछ कभी ...
बढ़ा ना पाओगे हाथ तोह...
ना तोड़ो हिम्मत मेरी..
मुझे तोह आदत है ..
जगे रुस्वाई बा नज़र करने की ...
पर क्या सेह पाओगे तुम ...
कोशिशे घुमान नेस्तोनाबूत होते हुए ..
Tuesday, February 28, 2017
कर्ण
Preface
Karna, from the mahabharata era was the first son of Kunti, the mother of 5 pandavs. No one knew about this truth except karna and kunti till karna died and sacrified his life for his brothers and mother. Karna was made a king by his friend Duryodhana, with whom he has maintained his loyalty and friendship untill his death. Had it known to everyone that Karna is the first child of KUNTI and eldest of pandav borthers, there would have been no Mahabharata, where Duryodhana had also accepted him as the king.
Times have changed but still we have KARNA's in our society, protecting us on borders and from the devilish desires of enemies across the nation. Many have been the sole support of their parents and a caretakers of them in their old age. Still they took the nation as their first priorty and have sacrified their life protecting us and giving us a safety blanket to breathe and live in peace.
This poem is a salute to all such brave defense personal and to their parents and families who bear such a loss, with tears in their eyes, and have held their head high with dignity and pride.
कर्ण
था महावीर राजा कर्ण वह
दान का जिसके न कोई अपार
माँगा कुंती ने जिससे बदले में
कर्त्तव्य दान ...
सोचा ना एक पल भी उसने
दानी था वोह राजा महान
दे अपनी जान वोह ...
बचा गया कुंती की आन
महा "भारत" का पुत्र वोह
दीखता नहीं उसका त्याग
जीवंत कर पूरी प्रजा को
ओढ़ लिया उसने वस्त्र श्वेत ..
कथा पुरानी बहुत है अब
पर रहे कर्ण अभी भी रहते
दे कर सुरक्षा मानव को
आप अपने जीवन है देते
कहती माँ भर आंसू आँख में
गर्व है जीवन तुझ को दिया
बाप पोछते आंसू आँख के
सीना गर्व से चौड़ा मेरा किया
कहती बहन आओगे कब भैया
मेरे नयन मेरे तकते
लेकर राखी हाथों में ..
तुम्हारा रास्ता हम सब देखते .
-नीतू (१/३/२०१६)
Karna, from the mahabharata era was the first son of Kunti, the mother of 5 pandavs. No one knew about this truth except karna and kunti till karna died and sacrified his life for his brothers and mother. Karna was made a king by his friend Duryodhana, with whom he has maintained his loyalty and friendship untill his death. Had it known to everyone that Karna is the first child of KUNTI and eldest of pandav borthers, there would have been no Mahabharata, where Duryodhana had also accepted him as the king.
Times have changed but still we have KARNA's in our society, protecting us on borders and from the devilish desires of enemies across the nation. Many have been the sole support of their parents and a caretakers of them in their old age. Still they took the nation as their first priorty and have sacrified their life protecting us and giving us a safety blanket to breathe and live in peace.
This poem is a salute to all such brave defense personal and to their parents and families who bear such a loss, with tears in their eyes, and have held their head high with dignity and pride.
कर्ण
था महावीर राजा कर्ण वह
दान का जिसके न कोई अपार
माँगा कुंती ने जिससे बदले में
कर्त्तव्य दान ...
सोचा ना एक पल भी उसने
दानी था वोह राजा महान
दे अपनी जान वोह ...
बचा गया कुंती की आन
महा "भारत" का पुत्र वोह
दीखता नहीं उसका त्याग
जीवंत कर पूरी प्रजा को
ओढ़ लिया उसने वस्त्र श्वेत ..
कथा पुरानी बहुत है अब
पर रहे कर्ण अभी भी रहते
दे कर सुरक्षा मानव को
आप अपने जीवन है देते
कहती माँ भर आंसू आँख में
गर्व है जीवन तुझ को दिया
बाप पोछते आंसू आँख के
सीना गर्व से चौड़ा मेरा किया
कहती बहन आओगे कब भैया
मेरे नयन मेरे तकते
लेकर राखी हाथों में ..
तुम्हारा रास्ता हम सब देखते .
-नीतू (१/३/२०१६)
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